मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

Re: मैं सिर्फ़ हिन्दूवादियों से मुख़ातिब हूं

फ़रीद ख़ान साहब और बाकी के लोग,
मैने कुछ दिन पहले ही नारद जॉएन किया है और आने के साथ ही इतना सारा ज़हर देखने सुनने को मिल रहा है । कुछ कमेन्ट्स लिख रहा हूं । जिसे बुरा लगे उस भाई-बन्धु से एडवान्स मे सॉरी ।

पर आपकी बात सुन कर बहुत दु:ख हुआ । आपने तो स्वयं ही "बात ना सुनने पर धमाकों की धमकी दे डाली" । भारत एक बहुत बड़ा देश है और भारत की समस्याएं भी बहुत बड़ी, पुरानी और जटिल । जाने कितने लोगों की बात नही सुनी जाती । जाने कितने लोगों की बात नही सुनी जा सकती । क्या वो सब धमाके करने लगें ? लेकिन करेंगे क्या आप । अपनी आदत से मजबूर हैं । तभी तो इस बीमार दृष्टिकोण को सही समझा रहे हैं । आप जैसे लोग ही तो हैं जिन्होने आपकी कम्यूनिटी को बदनाम कर रखा है । कभी शिक्षा की बात नही । कभी विकास की बात नही । कभी आगे बढ़ने की बात नही । बस वही घिसी पिटी बातें की हमारे साथ ये हुआ, वो हुआ । हमेशा बाँटने वाला दृष्टिकोण । कभी समाज की समस्याओं पर बिना हिन्दू-मुस्लिम ऐंगल के भी नज़र डालिये । सारा तो शायद किसी पब्लिक स्कूले मे जाती होगी । कभी उन बच्चों के बारे मे सोचिये जिन्हे स्कूला जाना भी नसीब नही होता ।

सारा को उसकी टीचर ने कहा की सबेरे उठ के भगवान की पूजा करनी चाहिये
तो वो ग़लत हो गया । सारा के माता-पिता ने उसे ये क्यों नही समझाया कि बेटे, पूजा और इबादत एक ही चीज़ होते हैं । और ये कि सिर्फ़ सबेरे ही नही, हम पाँच बार इबादत करते हैं दिन मे । उसे ये क्यों नही समझाया कि हिन्दी मे जिसे उसकी टीचर भगवान कह रही थीं असल मे उसी को उसके घर मे ख़ुदा बुलाया जाता है । क्यों नही समझाया, बताइये ?
मेरे ख़्याल से तो सारा के माँ-बाप के पास एक अच्छा मौका था, एक अच्छी सीख की नीँव डालने का जिसे उन्होने बेकार कर दिया, और चले आये ब्लॉग लिखने और शिकायत करने ।

मुझे नही पता कि जीवन मे आपने क्या क्या देखा है जिसकी वज़ह से आपको इतनी कड़वाहट मिली है । मै तो पैदा हुआ हूँ बनारस मे और पूरा बचपन यहीं बिताया है । मुस्लिम बहुल क्षेत्र के बगल मे ही रहता हूँ और जाने कितने दंगे अपनी आँखों से "लाइव" देखे हैं । अपना मुँह नही खोलना चाहता उन सारी बातों को लेकर । बस यही कहना चाहता हूँ कि लाइफ़ मे ऐसे ही इतनी टेन्शन है, इतनी परेशानियाँ हैं, इतनी उलझने हैं । यहाँ तक की इन्टरनेट पर भी इतने सारे हेट ग्रुप्स हैं, हेट मेल्स चलती रहती हैं । अब यहाँ भी वही सब चालू । मै तो करने आया था प्यार-मोहब्बत की बातें, शेर-ओ-शायरी, बचपन की भूली-बिसरी कविताओं और कहानियों की बातें लेकिन अब लिख रहा हूँ ये सब ।

धिक्कार है ! ऐसी शिक्षा, ऐसे समाज, सब को धिक्कार है ।

9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भाई अभिषेक, क्यों विचलीत होते हैं. इन लोगो के पास कोई मुद्दा है नहीं तथा हर किमत पर अपने आप को महान दर्शाना है.

हमारे चिट्ठा ग्रुप में प्यार मोहब्बत की ही बाते होती है, समय के साथ आपको समझ में आ जाएगा. हाँ आलोचनाएं भी होती है, मगर देश हित को देख कर. फिर मुल्ला-मौलवी हो या शिव सैनिक, कोई पक्षपात नहीं.

अनूप शुक्ल ने कहा…

वाह भाई बनारसी!

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

लेख बढिया लिखे हो बनारसी बाबू, जिसको झगडना है झगडने दो, आप तो मस्त पान खाओ और शेर शायरी सुनाओ!!

ePandit ने कहा…

पता नहीं कुछ लोगों को हमेशा अपनी दुर्दशा के जिम्मेदार बहुसंख्यक ही क्यों दिखते हैं। अरे भाई पूरे देश के स्कूल, कॉलेजों और कंपनियों में कहाँ रोक है कि मुसलमान नहीं आ सकते, उल्टे कई जगह उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था हो रही है।

मेरे साथ के कुछ मुसलमान दोस्त हैं जिन्होंने आगे पढ़ा नहीं वो मेहनत मजदूरी कर रहे हैं। जिन्होंने परिश्रम पूर्वक पढ़ा वो आज अच्छी जगहों पर कार्यरत हैं और जीवन में सफल हैं। जो लोग परिश्रम नहीं करते, अपने ही दायरों में कैद रहते हैं वो शोर करने लगते हैं कि हमारे साथ भेदभाव होता है। भाई किसने रोका है उनको किसी ने आगे आने से भारत के कानून ने तो सबको बराबर हक दिया है और हमारे नेताओं ने तो उन्हें उससे भी 'ज्यादा'।

पांडे जी आप दुःखी न हों चिट्ठाजगत में बहुत ही अच्छे लोग मौजूद हैं वो आजकल ही कुछ ऐसे तत्व घुस आए हैं और आपका आते ही ऐसे लोगों से पाला पड़ गया। मेरा सुझाव यही है कि आप इन लोगों की व्यर्थ बातों का जवाब देने में अपनी ऊर्जा न खराब करें।

चिट्ठाजगत में अधिकतर लोग बहुत ही सज्जन हैं और शीघ्र ही सब आपके मित्र होंगे।

अनुनाद सिंह ने कहा…

आपके सकारात्मक विचारों पर नतमस्तक हूँ। मुहल्ले वालों की काल्पनिक, एकपक्षीय और नकारात्मक सोच का आपने बहुत ही सकारात्मक जवाब दिया है।

मुहल्ले वालों को जरा ये भी दिखाइये:

१) देश का सर्वोच्च पद एक बार नहीं, कई बार मुसलमानों ने सुशोभित किया है।

२) पाकिस्तान और बांग्लादेश में जितने हिन्दू एम. एल. ए. नही बने होंगे, उससे ज्यादा मुसलमान भारत के बिभिन्न प्रदेशों के राज्यपाल हो चुके हैं।

३) दुनिया के किसी देश में ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा कि बहुसंख्यक समुदाय अपने ही देश में असहाय और शरणार्थी बना हो, काश्मीर की तरफ भी कभी झांक लिया करो।

४) भारत में मुसलमानों को अनेक ऐसे अधिकार मिले हुए हैं जो हिन्दुओं को नहीं है, और इसका उल्टा बिल्कुल सत्य नहीं है।
(हज की सबसीडी, अनेक विवाह की छूट, अल्पसंख्यक संस्थानो को सुविदायें, काश्मीर में धारा-३७०, आदि)

५) भारत में मुसलमानों को मजहब के आधार पर पोलियो की दवा का विरोध करने की छूट है, परिवार नियोजन न अपनाने की छूट है । (मेरा मानना है कि यदि इस देश में मुसलमान नहीं होते तो दो बच्चों का सिद्धान्त अपनाने के लिये कब का कानून बन गया होता) , और बात-बात पर विरोध करने की छूट है (इराक और डेनमार्क के मसले पर भारत में जितना विरोध हुआ, उतना विरोध अनेक मुस्लिम देशों में भी नहीं हुआ होगा)।


फ़रीड की धमकी में गलती से अन्दर की बात निकल आयी है, असली स्थिति इससे भी अधिक गम्भीर है)

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा उत्तर है आपका. अब अविनाश ने समझदारी दिखाते हुए फ़रीद की उस धमकी को 'टोन डाउन' दिया है और वे यह सफ़ाई भी दे रहे हैं कि धुर विरोधी और प्रियंकर इसे ठीक से समझे नहीं थे. पर मैं तो देख रहा हूं कि सभी उसे उसी तरह समझ रहे हैं जैसा हम समझे थे.

aum ने कहा…

Hi Abhi...mujhe itni achchi Hindi nahi aati....But I must say I went through you blogs and felt very proud I know you personally...Keep writing and enriching me in this profound language
God bless you

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

aapne baat to bilkul theek kahi hai, lekin aise tangdil logon kee baaton par kuchh n hee kahaa jaae to jyada theek hoga.

drdhabhai ने कहा…

अरे भाई हम भी हैं यहां आप का लेख पठकर अच्छा लगाकभी समय मिले तो मेरी पोस्ट पढना क्या मेरा मित्र मुसनमान नहीं हो सकता.http://merachithha.blogspot.com/2007_10_01_archive.html