प्रिय मित्रों,
सोचता हूँ कि शुरुआत कुछ हिन्दी कविताओं से करूँ । कुछ ऎसी कविताएं जो कि दिल के बहुत करीब हैं । कारण - बचपन से ही ये कविताएं ज़हन मे समा सी गयी हैं । बचपन - भोला और मासूम बचपन, उस समय तो बस ये था कि ये कविताएं पाठ्यक्रम का हिस्सा मात्र थीं । या तो इन्हे याद करो, या फ़िर सन्दर्भ, प्रसंग, भूमिका, और भावार्थ वग़ैरह के साथ इनके कुछ हिस्से इम्तेहान के लिये तैयार करो । कविता का सही सही अर्थ, उसका भाव, उसका सन्देश... ये सब कहां समझ मे आने वाले थे । अब पढ़ो तो लगता है कि वाह! क्या लिखा है कवि ने ।
ऐसी ही एक कविता है "जलाओ दिये" । यूपी बोर्ड मे शायद छठवीं कक्षा मे थी मे ये कविता । कवि का नाम गोपालदास "नीरज" है । जरा देखिये कविता का भाव, सन्देश और शब्द -
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
नयी ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
उषा जा न पाये, निशा आ ना पाये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,
भले ही दिवाली यहां रोज आये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये ||
-- गोपालदासजी "नीरज"
ऐसी ही कुछ और भी कविताएं हैं दिमाग़ मे । जल्दी ही लिखता हूँ उनके बारे मे भी...
आपके अपने
~~ पाण्डेय जी "बनारस वाले"~~
बुधवार, 7 फ़रवरी 2007
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1 टिप्पणी:
चिट्ठाकारी जगत में स्वागत। आपके विचार और कविता-शेरों की पसंद अच्छे हैं। पुरानी भूल गयी कविताओं को याद दिलाने के लिये धन्यवाद!
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