मंगलवार, 19 जून 2007

एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के दिल की दास्तान

ना करूँ स्विच ?
क्यों ना करूँ स्विच ?

अंधियारी निशा का साया
सप्ताहांत संध्या पर
काम का चरम दबाव
वातानुकूलित लैब मे बैठ
मेरा निशाचरी दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?

आउट डेटेड बॉस के
घिसे-पिटे वादों से क्षुब्ध
आदिकालिन ख्यालों से आहत
अपने ही दोस्तों से प्रतिस्पर्द्धा करता
मेरा सहज दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?

काम की तलाश
जिम्मेदारी की आस
सम्मान कि क़सक मे
टीम दर टीम - प्रोजेक्ट दर प्रोजेक्ट
मेरा भटकता दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?

नाकारे माहौल मे
मक्कारों के बीच
विलुप्त होते प्रोजेक्ट्स का साया
घटती कार्मिकों की तादाद से
मेरा असुरक्षित दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?

आर ऐंड डी के लिये हायर्ड
डेवलपमेंट से बोझिल
टेस्टिगं मे अटका
छुट्टियों को चिरकाल से प्रतीक्षित
मेरा कुंठित दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?

बहुराष्ट्रीय आय से सिंचित
वित्त सरिता सी कंपनी
९% इन्क्रीमेण्ट के चने चबाता
ऑनसाइट के सपने, सपनो मे देखता
मूल्यांकन-समीक्षा मे लताड़ित
मेरा प्रताड़ित दिल सोचता है
क्यों ना करूँ स्विच ?


ऐसे ये कविता मैने नही लिखी है । हमेशा की तरह इंटरनेट से चुरायी हुई है । :-)

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

इतने दिन से दिखे नहीं तो हम तो समझे बनारस जाके सन्यास वगैरह ले लिये हो. :)

अब निरंतर लिखिये.

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छी चोरी है!

अभिनव ने कहा…

भाई अभिषेक,

बहुत बढ़िया कविता पढ़वाई आपने, इसके लिए धन्यवाद। साफ्टवेयर वालों के जीवन का सटीक वर्णन किया गया है।
यदि यह पता चल सके कि किसने लिखी है तो और भी आनंद आ जाए।

ePandit ने कहा…

बिल्कुल करो जी स्विच, हमारी शुभकामनाएं! :)

रवि रतलामी ने कहा…

आपने एक और आधुनिक कविता की नींव रख दी.

बढ़िया संप्रेषण!

Yunus Khan ने कहा…

बहुत हो गई गुरू अब करई लो स्विच

दिनेश श्रीनेत ने कहा…

बहुत अच्छे... मैं गोरखपुर का हूं आपके शहर बंगलौर में रोजी-रोटी की तलाश में आया हूं. वैसे मेरा आईटी इंडस्ट्री से कोई वास्ता नहीं मैं पत्रकार हूं. पहले लखनऊ में था. मेरे दो ब्लाग हैं कृपया गौर फरमाएं...
dinesh
www.khidkiyan.blogspot.com
www.indianbioscope.blogspot.com

Arun Jingar ने कहा…

पाण्डेय जी का शुक्रिया कि उन्होने हमारई कवित को यहा स्थान दिया और आप सभी दोस्तो क आभर कि आपने होसला आफ़्जाइ की.

सबुत तो चाहिये होग कि ये कविता पहली बार कहा प्रकशित हुइ तो सथियो orkut ke is link par guar फ़रमैयेगा:

(
http://www.orkut.com/CommMsgs.aspx?cmm=1149936&tid=2522485471794194290&kw=%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2+%E0%A4%AE%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9A+

Thanks to all of you
Arun
arunjing2@gmail.com